Monday, 5 December 2011

डॉ. शिव ॐ अम्बर की जुबानी

 अतीत के पन्नो को कुरेदते डॉ. शिव ॐ अम्बर,




Wednesday, 24 August 2011

Thursday, 19 May 2011

siyasat ki tavayaf

ये सियासत की तवायफ का दुप्पट्टा है ,


jvalant

ज्वलंत राष्ट्र -चैतन्य के जीवंत दृष्टान्त स्वातंत्र्यवीर सावरकर ,


Vikal vatas

विकल वातास बनकर जी रहे है हम,

Wednesday, 18 May 2011

Kavita ,

कविता अर्थात भाषा में आदमी होने की तमीज .

Wednesday, 4 May 2011

PURUKHO VALE GHAR ME .....

हम पुरुखो वाले घर में परदेशी कहलाये,



Saturday, 30 April 2011

Dr. Shiv Om Amber & 'THE WAKE'

डॉ. शिव ॐ अम्बर एवम 'द वेक' 
डॉ. शिव ॐ अम्बर अपनी   पत्नी  अलका पांडे के साथ कोलकाता में'द वेक' पत्रिका के  प्रबंध संपादक  मनोज त्रिवेदी के निवास स्थान पर
चित्र में बैठे हुए है कोलकाता के नामी  प्रोफेसर  डॉ. प्रेम शंकर त्रिपाठी
 'द वेक' पत्रिका की संपादक शकुन त्रिवेदी एवं मनोज त्रिवेदी  

Dr. Shiv Om Amber Along with Hon'ble Governor of West Bengal  Keshrinath ji Tripathi
                                  'THE WAKE' Editor Shakun Trivedi, Mrs. Alka Pande.

                                       


'THE WAKE

BACHCHO KE TUTLE VACHAN

बच्चो के तुतले वचन,


DR. SHIV OM AMBER 'S FAVOURITE LINES.

डॉ. शिव ॐ अम्बर की  कुछ विशिष्ट  पंक्तिया ,,,,

. लफ्जो में हुंकार बिठा
  लहजो में खुद्दारी रख
  जीने की ख्वाहिश है तो
  मरने की तैयारी रख ,

सबके सुख में शामिल हो ,
दुःख में साझेदारी रख ,
श्री मदभागवत गीता पढ़
युद्ध निरंतर जारी रख,

२.राजभवनो की तरफ न जाये फरियादे
   पत्थरो के पास  अभ्यंतर नहीं होता |
   ये सियासत की तवायफ का दुप्पट्टा है
   ये किसी के आंसुओं से तर नहीं होता .

३.  सांप यु ही नही लिपटते है ,
आपकी देह संदली होगी.
    कृष्ण के पांव में पड़े छाले ,
राधा धूप में चली होगी .

४.माँ
मुझको लगती चोट तड़प उठती थी वो ,
मेरी सिसकी उसको बहुत सताती थी .
अक्सर निर्जल  एकादशिया  जीती मां
मेरी चिंता में जलती संझवाती थी .
उसके चरणों में थी मेरी गंगोत्री ,
उनको छूता था कालिख धुल जाती थी .

५.नागफनियो की गली इठला रही है ,
    वैष्णवी तुलसी यहाँ  कुम्हला  रही है .
फिर कही से दर्द के सिक्के मिलेंगे
 ये हथेली आज फिर खुजला रही है.

६.सभी नागमत ऊँचे गले से गाये नहीं जाते,
 जिगर के जख्म चौराहे पर दिखलाये नहीं जाते .
 हमेशा हादसों के हाथ पे हमने रखी गजले,
 भिखारी हमसे खाली हाथ लौटाए नहीं जाते.

७.फांको  को भी मस्ती में जीते है,
बस्ती बस्ती फरियाद नहीं करते.
सच कहते है अथवा चुप रहते है,
हम लफ्जो को बर्बाद नहीं करते.





               


Saturday, 12 March 2011

  हाजिर है हम .......



















आस्था का उज्जवल निदर्शन

धूप की angadaiya  जख्मी पड़ी है ......
 हम भ्रष्टन के भ्रष्ट हमारे
 मेरे पास गुलाल था .....